मुन्ना सिंह ने 12 साल में इतनी वारदातें कि गिनती याद नहीं
चंबल के बीहड़ों में 68 साल के मुन्ना सिंह मिर्धा से पत्रकारों की खास बातचीत …….

जयपुर । 8वीं पास कर चुका शिक्षक का बेटा जो 20 साल की उम्र में डकैत बन गया। 12 साल तक बीहड़ों में उसका खौफ रहा। इन सालों में इतना कुछ हुआ कि अब उन्हें खुद भी याद नहीं कि उन्होंने कितनी हत्याएं की और कितने मुकदमे उनके खिलाफ दर्ज हैं। माता-पिता ने कई बार समझाया। आखिरकार कसम दी तो मुन्ना सिंह ने सरेंडर तो कर दिया, लेकिन उनके मन में आज भी बीहड़ बसा हुआ है।
कई दिनों की कोशिश के बाद मुन्ना सिंह पत्रकारों की टीम से मिलने के लिए राजी हुए। 90 किलोमीटर का सफर तय कर हम सूरज ढलने के बाद उनके बताए ठिकाने पर पहुंचे। सुनसान हाईवे पर चार बंदूकधारी खड़े थे। बोले- थक गए होंगे, पहले चाय पी लो, फिर आगे चलते हैं। चाय पिलाने के बाद वे हमें अपने साथ ले गए। जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, बीहड़ और अंधेरा दोनों गहराते जा रहे थे।
कुछ किलोमीटर चलने के बाद हमारे सामने थे मलखान के साथ काम कर चुके मुन्ना सिंह। उनके साथ उनके 20 साथी भी थे। वे पान सिंह तोमर, बलवंत सिंह की गैंग में रहे थे। हमने सवाल पूछने शुरू किए और जवाबों में सामने आती गई मुन्ना सिंह की कहानी…

लाख सफाई दी, पर पुलिस ने नहीं मानी बात
मुन्ना सिंह ने बताया कि वे 8वीं पास कर चुके थे और उनका आर्मी की नौकरी के लिए सिलेक्शन हो गया था। इसी दौरान इलाके के दबंगों ने उन पर चोरी का इल्जाम लगा दिया। तब वे घर से नानी के पास भाग गए। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। मुन्ना सिंह बताते हैं कि मैंने पुलिस को लाख सफाई दी कि मैंने कुछ नहीं किया, लेकिन पुलिस ने एक न सुनी। चोरी के आरोप में जेल भेज दिया। जेल जाने के साथ ही आर्मी में जाने का सपना टूट गया। जमानत पर आने के बाद वे बागी हो गए। चंबल का बीहड़ उनका घर बन गया। उनकी जमीन का भी विवाद हो गया। जिन्होंने चोरी के इल्जाम में फंसाया, उन्हें सजा भी दी। बाद में राजी-नामा हो गया।


पुलिसकर्मी को पानसिंह तोमर समझ नजदीक गए तो पुलिस ने घेरा
बीहड़ों में दूसरे गैंग से मिलने का कोडवर्ड होता है। एक दूसरे को कोडवर्ड बताने के बाद ही आगे की बात शुरू होती है। मुन्ना सिंह को एक बार बीहड़ में खाकी वर्दी में एक शख्स खड़ा दिखाई दिया। उन्हें लगा पानसिंह तोमर है। ऐसा इसलिए क्योंकि पानसिंह तोमर हमेशा आर्मी की ड्रेस में ही रहते थे। मुन्ना सिंह ने तीन बार आवाज लगाकर पूछा, लेकिन सामने वाले ने कोई जवाब नहीं दिया। पास जाकर देखा तो पता चला पानसिंह नहीं, पुलिस है। बोले- उस दिन तो पुलिस ने पकड़ ही लिया था, लेकिन मैं खतरा भांपकर बीहड़ों में भाग गया। कहते हैं- मैंने सिर्फ 30-40 वारदातें की, लेकिन पुलिस ने न जाने कितने केस लगा दिए। उन पर सौ से ज्यादा वारदातें दर्ज हैं।
एक दिन में तीन बार पुलिस से मुठभेड़
मुन्ना सिंह ने बताया कि वे रतनगढ़ की माता के जंगलों में गए थे। वहां से लौट रहे थे तो पुलिस ने सामने से घेर लिया। फिर मुठभेड़ हुई। वे सभी बच निकले। कुछ आगे चले तो पुलिस ने फिर घेर लिया। तब दोनों ओर से फायरिंग हुई। शाम को भी पुलिस पीछा करते हुए उन तक पहुंच गई। वे चंबल को पार कर किसी तरह बच निकले। उनकी गैंग की जालौन, आगरा व इटावा में भी पुलिस से मुठभेड़ हो चुकी है।

व्यापारी खुद ही पैसा भेज देते थे
मुन्ना सिंह बताते हैं- बीहड़ में खाने-पीने की काफी जरूरत होती थी। गैंग चलाने के लिए रुपयों की जरूरत होती थी। चक्की से आटा के लिए जगह तय होती थी। दाल और मसाले मंगवा लेते थे। व्यापारियों को बीड़ी के बंडल के कागज में रुपए मंगवाने के लिए मैसेज भेजते थे। फिर व्यापारी खुद ही रुपए भेज देते थे। कई भरोसे वाले व्यापारियों को रुपए लौटा भी देते थे।
दिन में छुपते और रात को निकलते थे
मुन्ना सिंह बताते हैं कि चंबल भूल-भुलैया की तरह है। हर पल चौकन्ना रहना पड़ता है। पता नहीं कब सामने से दुश्मन आ जाए और गोलियों की बौछार शुरू हो जाए। इसी वजह से दिन में बीहड़ों में छिपकर रहते थे। खाना भी एक ही वक्त बनाते थे। खाना बनाकर रात के समय जगह छोड़ कर निकल जाते थे। कभी भी एक जगह पर नहीं रुकते थे। बताते हैं- मां-बाप से मिलने के लिए रात के अंधेरे में छिपकर जाता था। कई बार आने के लिए मुखबिरी भी की।

नेता भी वोट के लिए संपर्क करते थे
जैसे ही कहीं पर चुनाव आते थे, कई नेता समर्थन के लिए बीहड़ों में पहुंच जाते थे। नाम पूछने पर बोले कि ऐसे वक्त में बड़े नेताओं के नाम लेना सही नहीं है। बागी के भी नियम होते थे, भरोसा होता था। लूट के बाद मंदिर पर चढ़ावा चढ़ाया जाता था। शराब पीने की बात पर बोले कि शराब से काफी दूर रहते है। बीहड़ में कई दस्यु सुंदरी भी बनी थी, लेकिन उनकी गैंग महिलाओं से दूर रहती थी।
13 साल कई जेलों में रहे
मुन्ना सिंह मिर्धा ने बताया कि 17 जून 1982 को उन्हें MP के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने सरेंडर कराया था। तब MLA नवीनचंद, कलेक्टर, SP सहित कई अधिकारी आए थे। मलखान सिंह, नवाब सिंह भदौरिया, कल्याण सिंह परिहार, पहलवान सिंह परिहार, कुंभाराम कुशवाहा के साथ पूरी गैंग ने सरेंडर कर दिया था। वे 13 साल जेल में रहे थे। उन्हें आगरा, इटावा, उरैया, ग्वालियर, भिंड, धौलपुर में रखा गया था। वे बताते हैं कि प्रशासन ने उनके साथ धोखा किया है। उन्हें 10 बीघा ही जमीन दी गई। परिवार से किसी को नौकरी भी नहीं मिली।