हाल ही में मानसून के मौसम में जम्मू, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख जैसी जगहों पर बादल फटने की घटनाएं चिंता बढ़ा रही हैं. इनका पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है.
मानसून के महीने में तेज बारिश से कई तरह की खतरनाक घटनाएं होती हैं. बाढ़ के अलावा, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं भी होती हैं. हाल ही में जम्मू में बादल फटने की घटना हुई. इससे पहले हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में भी लोग बादलों के फटने के शिकार हुए हैं. बादलों के फटने की घटनाओं का इस तरह से बढ़ना चिंता का विषय है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की आपदा का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि यह घटना अधिकांश स्थानीय स्तर पर होती है जो पहाड़ी इलाकों में होती है.

बादलों का फटना वास्तव में अचानक एक साथ बहुत ही अधिक बारिश का होना है. ऐसा लगता है कि बारिश नहीं हो रही है बल्कि आसमान से कोई टंकी फूट पड़ी हो. इसीलिए इसे बादलों का फटना कहते हैं. तकनीकी रूप से कहा जाए तो यदि किसी इलाके में 10 सेमी से अधिक बारिश एक घंटे के अंदर होती है तो उसे बादलों का फटना माना जाता है.
क्या होता है इससे नुकसान
एक साथ इस तरह बहुत अधिक तादाद में पानी का गिरना इंसानों की जान तो लेता ही है, इससे सम्पत्ति को भी भारी नुकसान होता है. पहाड़ी इलाकों में होने से भूस्खलन की घटनाओं के होने की भी आशंका ज्यादा हो जाती है. भारतीय मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल मृत्युंजय महापात्रा का कहना है कि बादलों का फटना बहुत ही छोटे स्तर की घटना है और अधिकांश हिमालय या फिर पश्चिमी घाटों के पहाड़ी इलाकों में होती है.

कैसे फटते हैं बादल
महापात्रा बताते हैं कि जब गर्म मानसूनी हवाएं ठंडी हवाओं से अंतरक्रिया करती हैं तो इससे बहुत बड़े बादल बन जाते हैं. ऐसा भूआकृतियों और पर्वतीय कारकों के कारण भी हो सकता है. स्काईमेट वैदर में मेटियोरोलॉजी एंड क्लाइमेट चेंज के उपाध्यक्ष महेश पालावत का कहना है कि क्यूम्यलोनिम्बस यानि तूफानी बादल नाम के ऐसे बादल 13-14 किलोमीटर तक की ऊंचाई हासिल कर सकते हैं.
पूर्वानुमान मुश्किल क्यो
पालावत ने बताया कि अगर ये बादल एक ही इलाके के ऊपर फंस जाते हैं जहां उन्हें फैलाने वाली हवा नहीं चल रही हो, वे बहुत ही तेज बारिश के रूप में गिर जाते हैं. भारतीय मौसम विभाग की वेबसाइट के मुताबिक बादलों की फटने की इस तरह की घटनाओं का पूर्वामनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल होता है. क्योंकि जगह और समय के लिहाज से ये बहुत छोटी घटना होती है.
पूर्वानुमान नामुमकिन भी नहीं
बादलों के फटने की घटनाओं पर नजर रखने और कुछ घंटों पहले ही उनका पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐसे इलाकों में एक बहुत सघन रडार नेटवर्क की जरूरत होती है. इसके लिए एक बहुत ही उच्च विभेदन मौसम पूर्वानुमान मॉडल की आवश्यकता होती है. दिलचस्प बात यह है कि बादल फटने की घटना मैदानों में भी होती है, लेकिन वे केवल अपवाद की घटना होती है. इस महीने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कोंकण में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं, वे सभी पहाड़ी इलाके हैं.
रडार की जरूरत
महापात्रा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में रेड अलर्ट कर दिया गया था. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन का कहना है कि इन घटनाओं का नाओकास्ट यानी तीन घंटे पहले का पूर्वानुमान दिया जा सकता है. रडार हर जगह लगाया नहीं जा सकता फिर देश में रडार की संख्या बहुत कम हैं और उन्हें बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं. फिलहाल पूरे हिमालय में केवल सात रडार हैं.
एक सवाल यह उठ रहा है कि अचानक देश में बादल फटने की घटनाओं में इजाफा क्यों होता दिख रहा है. इसके लिए बहुत से कारक जिम्मेदार हैं. लेकिन यह जरूर है कि ऐसी घटनाएं साल भर और एक मौसम में भी लंबे समय तक नहीं देखने को मिलती हैं. मानसून के मौसम में ही इनके होने की आशंका पहले से ही ज्यादा रहती है. बहुत सी ऐसी घटनाओं का तो पता ही नहीं चलता है जिन्हें किसी जगह पर केवल भारी बारिश के तौर पर भी रिकॉर्ड किया जाता है क्योंकि यह बहुत ही कम समय में होने वाली घटना होती है. लेकिन इनके बढ़ने का एक कारण मानसून की असामान्यता और अनियमितता भी हो सकता है.