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रात के अंधेरे में प्रसव पीड़ा से तड़पती महिला को ढाई किमी ढोकर पहुंचाया अस्पताल

कोडरमा| आदिवासियों (Tribal) के विकास के लिए ही बिहार से अलग होकर झारखण्ड राज्य बना. लेकिन क्या यहां के आदिवासियों को वो सबकुछ मिला, जो उन्हें मिलनी चाहिए. कोडरमा के पिपराडीह गांव की कहानी इन सारे सवालों का जवाब है. इस गांव में आज भी सड़क और पानी की सुविधा नहीं है. ऐसे में बीमार या प्रसव पीड़ा से तड़पती महिलाओं को एम्बुलेंस की जगह खाट पर लादकर अस्पताल पहुंचाया जाता है. बारिश के मौसम में तो अस्पताल पहुंचाना काफी मुश्किल वाला काम हो जाता है.

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जिले के डोमचांच प्रखंड के मसनोडीह पंचायत के सुखवाटांड़ और पिपराडीह गांव में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. इस गांव के लोग जब बीमार पड़ते है, तो उन्हें पक्की सड़क तक पहुंचने के लिए करीब ढाई किमी का सफर उबड़-खाबड़ रास्तों से करना पड़ता है. गांव के लोग गर्मी में पीने के पानी के लिए तरस जाते हैं. पानी की किल्लत होने पर जंगल में चुआ खोदकर जैसे-तैसे पानी का इंतज़ाम लोग करते हैं. पानी के लिए भी ग्रामीणों को करीब एक किमी का सफर तय करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि सरकार और प्रशासन को इस बात का इल्म नहीं है, लेकिन इन आदिवासियों को केवल आश्वाशन देकर चैप्टर क्लोज कर दिया जाता है.

बीते गुरुवार की रात को गांव की सरिता देवी पति विशुन मुर्मू को तेज प्रसव पीड़ा शुरू हुई. पीड़ा होने पर गांव के लोगों ने संस्थागत प्रसव कराने के लिए प्रखंड मुख्यालय ले जाने का फैसला लिया. गांववालों ने खटिया तैयार किया और उसमें सरिता को लादकर करीब ढाई किमी की दूरी पैदल तय की. जंगल के ढाई किमी का रास्ता तय करना अपने आप में खतरों को न्यौता देना होता है. लेकिन इनलोगों के पास खतरों के बीच हर हाल में सफर करना एक मात्र चारा था. जैसे-तैसे जंगल के रास्ते से होकर गांववाले सरिता को लेकर पक्की सड़क तक पहुंचे, जिसके बाद ऑटो का इंतजाम कर उसे अस्पताल पहुंचाया गया. जहां सरिता ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया.
सड़क के अलावा पीने के पानी के लिए यहां के लोग तरसते रहे हैं. पिछले साल प्रशासन के लोग गांव आये थे. पानी की समस्या दूर करने के लिए चापानल लगाने का आश्वासन दिया. लेकिन अब तक चापानल नहीं लगाया गया.ग्रामीणों का कहना है कि उनकी फरियाद कोई नहीं सुनता. सड़क और पानी के लिए वे सालों से प्रशासन से मिन्नत करते आ रहे हैं, पर कोई सुध लेने वाली नहीं है.