भिलाई में यूरेशियन ईगल उल्लू का रेस्क्यू:वन विभाग और नोवा नेचर ने संयुक्त आपरेशन कर उल्लू की सबसे बड़ी प्रजाति को पकड़ कर बचाई जान , 3 दिनों तक कोशिश करने के बाद मिली सफलता
दुर्ग /भिलाई |छत्तीसगढ़ के भिलाई के जवाहर नगर MIG 2 इंदिरा गाँधी आर्ट्स एंड साइंस कालेज के पास में अनिल सहाय के घर के छत में एक विशेष प्रजाति के उल्लू के आने की जानकारी उनकी बेटी आभा सहाय ने अपने पिता सहित अपनी मित्र शिया पालित को दी ,उसने बताया की पिछले कुछ दिनों से वह उल्लू छत पर आ रहा है ,जिसपर शिया पालित ने अपने पिताजी एस जे पालित जो की इलाहाबाद बैंक रायपुर में सीनियर आफिसर है को बताया |उन्होंने तुरंत इसकी जानकारी दुर्ग क्षेत्र के वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक शालिनी रैना दुर्ग वन वृत्त को दिया जिसपर उनके द्वारा मामले को सम्बंधित वन मंडलाधिकारी अधिकारी धमशील गनवीर को अंतरित कर दिया |तीन दिनों से बड़ी मशक्कत करने के बाद में वन विभाग और नोवा नेचर ने संयुक्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर यूरेशियन ईगल उल्लू की जान बचा ली है। यह संयुक्त ऑपरेशन लगातार तीन दिनों तक जवाहर नगर भिलाई क्षेत्र में चला। फिलहाल, उल्लू को सुरक्षित और स्वस्थ अवस्था में मैत्री बाग जू भिलाई में छोड़ा गया है।

आभा सहाय ने बताया कुछ शरारती तत्वों द्वारा उल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश में है। वन विभाग की टीम मौके में पहुंची तो वहां से शरारती तत्व भाग गए। लेकिन उल्लू घर की छत पर बैठा हुआ देखा गया। वन विभाग के अमले ने वयस्क अवस्था के यूरेशियन ईगल उल्लू की पहचान की। इसका साइज करीब दो से ढाई फीट का है। गर्मी की वजह से उल्लू लोगों के घर की छत पर बैठा था।
रेस्क्यू में आई परेशानी

लगातार 3 दिनों तक कोशिश करने पर भी स्वस्थ अवस्था का उल्लू का रेस्क्यू करने में परेशानी होने लगी। जब भी उल्लू के पास जाते वह उड़ जाता और दूसरों की छत में जाकर बैठ जाता था। कभी एक छत से दूसरों के छत 3 दिनों तक यह होता रहा। लेकिन उस क्षेत्र से उल्लू जाने को तैयार नहीं था। आखिरकार ज्वाइंट टीम ने मंगलवार को उल्लू का रेस्क्यू सफलता पूर्वक किया गया।

भिलाई में यूरेशियन ईगल उल्लू का सफल रेस्क्यू ऑपरेशन किया गया।

यूरेशियन ईगल उल्लू की प्रजाति
यूरेशियन ईगल उल्लू यूरेशिया के ज्यादातर हिस्सों में रहते हैं। इसे चील उल्लू और बुहु भी कहा जाता है। कभी-कभी केवल ईगल उल्लू के रूप में संक्षिप्त किया जाता है। इस पक्षी के कान के ऊपरी हिस्से विशिष्ट प्रकार के होते हैं, जो गहरे काले रंग और गहरे रंग के होते हैं। नारंगी आंखें, विचित्र पंख और ढके हुए कान वाले यूरेशियन ईगल उल्लू यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। भारत के ज्यादातर हिस्सों में दिख जाते हैं, ये उल्लू रात में सक्रिय रहते है। दिन में ये सुरक्षित जगह तलाश कर आराम करते हैं। इनका ज्यादातर समय जमीन पर गुजरता है। ये भी लोमड़ी की तरह अवसरवादी जीव हैं। जमीन पर इंतजार के बाद शिकार कर सकते हैं। यह सबसे बड़ी प्रजातियों में से एक है।
कहां पाए जाते हैं और क्या खाते हैं
इस तरह के उल्लू ज्यादातर चट्टानी, खुले निवास, पेड़, खेतों, मैदान, शुष्क क्षेत्रों और घास के मैदानों की तरह चट्टानी क्षेत्रों में रहते हैं। लेकिन ज्यादातर यह पक्षी पर्वतीय क्षेत्र, अन्य चट्टान के क्षेत्रों और झाड़दार या दोनों के साथ क्षेत्र झीलों अपने शिकार करने के लिए वैसे जगहों में पाए जाते हैं। मुख्य रूप से इनका आहार में छोटे स्तनधारियों जैसे कि चूहा और खरगोश है। आहार श्रृंखला में ये बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।