बिहार शरीफ |किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्र ने एक बार फिर मानव पहलुओं को प्राथमिकता दी है। उन्होंने मामले को महज तीन दिन में निपटारा करते हुए जेल में बंद आरोपित किशोर को रिहा कर दिया। इतना ही नहीं, आठ माह की मासूम बच्ची को उसके दादा-दादी के घर पहुंचने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। यह सूबे का पहला केस है, जब महज तीन दिन में मामले का फैसला सुनाया गया। इस ऐतिहासिक फैसले ने कई नये रिकॉर्ड बनाये। किशोर-किशोरी की शादी को वैध करार दिया गया। वहीं, उनसे जन्मी आठ माह की बच्ची को उसका हक मिला। हालांकि, जज ने यह भी कहा है कि इस फैसले को आधार बनाकर किसी अन्य मामले में इसका लाभ नहीं लिया जा सकता है।जज ने जिला बाल संरक्षण इकाई व हिलसा बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी को बच्ची व किशोर दंपती की उचित देखभाल और संरक्षण के संबंध में हर छह माह पर प्रतिवेदन देने को कहा है। मासूम बच्ची के हितों व भविष्य को देखते हुए यह अनोखा फैसला सुनाया गया है। इसके लिए वे खुद तीन दिन तक किशोर व किशोरी के माता-पिता के साथ काउंसिलिंग की। इस दौरान उन्होंने उन्हें मानवीय पहलुओं की बारीकियों को समझाया। मासूम बच्ची के भविष्य की सुरक्षा के लिए उन्हें अपनाने को प्रेरित किया।


क्या था मामला:11 फरवरी 2019 को हिलसा थाना क्षेत्र के एक गांव की 16 वर्षीया किशोरी व 14 वर्ष के किशोर सरस्वती पूजा देखने निकले। वहां से दोनों भागकर दिल्ली चले गए। वहीं दोनों ने शादी रचा ली। इसी दौरान 19 जुलाई 2020 को एक बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद किशोरी को जब केस के संबंध में जानकारी मिली, तो वह वापस गांव लौट आयी। वहां पुलिस ने उससे पूछताछ की एवं कोर्ट में बयान कराया।इसमें किशोरी ने प्रेम संबंध में स्वेच्छा से किशोर के साथ जाने की बात कही। इसके बाद किशोर 20 फरवरी 2021 को कोर्ट में सरेंडर किया। एडीजे छह सह स्पेशल पॉक्सो न्यायाधीश आशुतोश कुमार ने लड़के को न्यायिक हिरासत में लेकर प्लेस ऑफ सेफ्टी शेखपुरा भेज दिया। इसी दौरान मामले को 19 मार्च को किशोर की पेशी जेजेबी में हुई। इसमें कोर्ट ने केस का संज्ञान एवं सारांश (आरोप गठन) किया। 20 मार्च को हुई गवाही में दोनों पक्ष बच्ची के साथ किशोर दंपती को आपसी सहमति से स्वीकार करने को राजी हुए।