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घड़ा है हमारे स्वस्थ जीवन का आधार : जानियें क्यों?

हार्टअटैक-बीपी से चाहते हैं दूरी तो घड़ा है जरूरी:मटके का पानी निकालेगा शरीर से जहर, कई बीमारियों की जड़ है रेफ्रिजरेटर

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गर्मी का मौसम आते ही मटके की अहमियत बढ़ने लग जाती है। इसका पानी पीने में जितना ठंडा है, उतना ही सेहत के लिए फायदेमंद। आज आरओ और फ्रिज का पानी होने के बावजूद लोग मटके का पानी पीना जरूरी समझ रहे हैं। मटके का पानी शरीर के पीएच लेवल को बैलेंस करता है और इसका पानी पीने से मिट्टी के नेचुरल मिनरल बॉडी में पहुंचते हैं। आयुष मंत्रालय के राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ में प्रोफेसर अच्युत त्रिपाठी के मुताबिक, फ्रिज के पानी में एक प्रकार की गैस होती है, जो सेहत के लिए हानिकारक होती है। वह गैस फ्रिज में रखे सफेद पदार्थों को ज्यादा नुकसान करती है, उसके प्रभाव से एल्कलाइट्स खत्म हो जाते हैं। फ्रिज के पानी को पीने से से संतुष्टि नहीं होती। फिल्टर्ड वॉटर से इतर घड़े में नेचुरल ऑक्सीजन छनकर आती है, जिस वजह से वह सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद हो जाता है।

मिट्टी के बर्तनों पर रिसर्च करने वाले राजस्थान के अंजनी किरोड़ीवाल का कहना है कि प्रेशर कुकर की तुलना में मिट्टी की हांडी में खाना पकाना अधिक फायदेमंद होता है।

अमृत माटी इंडिया ट्रस्ट संस्था के चेयरमैन अंजनी किरोड़ीवाल पिछले 15 सालों से मिट्टी के बर्तन के वैज्ञानिक फायदों पर रिसर्च कर रहे हैं। 1913 में जर्मनी में हुई एक रिसर्च के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि इस अध्ययन के अनुसार व्यक्ति को 1-14 तक का पीएच लेवल दिया गया है। हमारे शरीर में अलग-अलग द्रव्य (लिक्विड) पाए जाते हैं और उन सभी का पीएच अलग होता है। जिस व्यक्ति का पीएच लेवल सात है वह न एसिडिक है और न एल्कलाइन यानी वह न्यूट्रल है। जिस व्यक्ति का पीएच 7 से नीचे की ओर आता है तो उस व्यक्ति का शरीर एसिडिक है।

पीएच लेवल 7 से 14 की तरफ जाने का मतलब है कि शरीर में एल्कलाइन (क्षारीयता) बढ़ती है। पीएच 7-14 का होने का मतलब है कि आपको भविष्य गंभीर बीमारियों का खतरा न के बराबर होगा। घड़ा एल्कलाइन फॉर्मेट में होता है यानी क्षारीय प्रवृति का होता है। इसलिए मिट्टी के घड़े में पानी पीने से शरीर की अम्लता घटती और क्षारीयता बढ़ती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो घड़े का पानी शरीर के लिए सबसे फायदेमंद माना जाता है।
मटके में पानी कैसे ठंडा होता है?
मटके में पानी ठंडा होने के पीछे वही प्रक्रिया है जो त्वचा से पसीना सूखने की है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब गर्मी में आपको पसीना आता है तो पसीना बह जाने के बाद स्किन ठंडी महसूस होती है। इसी प्रकार घड़े में पानी भरा होने पर उसके सूक्ष्म छिद्रों से हवा आर-पार होती रहती है जिससे पानी ठंडा रहता है। जितना ज्यादा हवा घड़े से आर-पार होगी, उतना ही ज्यादा पानी भी ठंडा होगा।

गर्मियों में मटके का पानी पीना क्यों जरूरी?
आयुष मंत्रालय के राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ में प्रोफेसर अच्युत त्रिपाठी के मुताबिक, घड़े का पानी पीने से कफ और कोल्ड जैसी समस्या नहीं होती, जबकि फ्रिज का पानी पीने से इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और घड़े का पानी शरीर को ठीक रखता है। घड़े का पानी पीने से बार-बार प्यास नहीं लगती। यह पानी शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा ठीक रखता है। कुम्हार जब मिट्टी को पकाकर घड़ा तैयार करता है तो उस घड़े का पानी पीने से शरीर से जहरीले पदार्थ भी बाहर निकलते हैं।

प्रोफेसर अच्युत त्रिपाठी का कहना है कि मटके का पानी सीजनल बीमारियों से भी बचाता है।

अंजनी किरोड़ीवाल का कहना कि घड़े का पानी पीने से शरीर में क्षारीयता बढ़ती है जिससे मुंह का स्वाद व गंध ठीक होती है। वह पानी जब पेट में जाता है तो पाचन से जुड़ी परेशानियों को दूर करता है। एल्कलाइन वाटर हार्मोन को संतुलित करता है। बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करता है। वजन को बढ़ने नहीं देता। शरीर के जहरीले तत्त्व को बाहर निकालता है। त्वचा को अच्छा बना देता है।
एक नई खोज, एल्कलाइन वाटर जग
अमृत माटी इंडिया ट्रस्ट ने राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों से मिट्टी जमा करके एल्कलाइन वाटर जग तैयार किया है जिसे आईआईटी रुड़की ने भी सर्टिफाइड किया है। यह जग पानी में घुले प्रदूषण और फ्लोराइड की समस्या से निजात दिलाएगा और पानी की गुणवत्ता भी बढ़ाएगा। अंजनी किरोड़ीवाल के मुताबिक, इस जग में लो पीएच लेवल का पानी डालते ही एल्कलाइन वाटर में बदल जाता है और एल्कलाइन वाटर इंसान के शरीर के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

मटका खरीदते समय ध्यान रखें ये बातें
किरोड़ीवाल के मुताबिक, अव्वल तो घड़ा खरीदने के लिए कोई खास पैमाना नहीं है, लेकिन आप पीएच लेवल सॉल्यूशन से पीएच लेवल जांच लें और देखें कि उसके पानी का पीएच 7 से ऊपर हो, उसी मटके का पानी पीना फायदेमंद होता है। उस पीएच लेवल से घड़े की मिट्टी की गुणवत्ता का भी पता लग जाता है।
प्रोफेसर अच्युत के मुताबिक, घड़ा साल दो साल पुराना नहीं होना चाहिए। घड़ा चिकना नहीं होना चाहिए। उस पर किसी प्रकार की पॉलिश नहीं होनी चाहिए। वह खुरदुरा होना चाहिए।प्रोफेसर अच्युत त्रिपाठी के मुताबिक, मटके का पानी ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसका पानी बैड कौलैस्टैरौल की मात्रा को कम करके हार्ट अटैक की आशंकाओं को भी कम करता है।

मटके का पानी कब नहीं पीना चाहिए?
अंजनी किरोड़ीवाल के अनुसार, मटके का पानी किसी भी मौसम में पिया जा सकता है। इस पानी को पीने से कोई नुकसान नहीं होता। जब फ्रिज इस दुनिया में नहीं था तब भी व्यक्ति मटके का पानी ही पीता था और उसे कोई नुकसान नहीं होता था। अंजनी एक उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि किसी कुएं का पानी कभी सड़ता नहीं है क्योंकि उस पानी में मिनरल्स होते हैं, ठीक उसी तरह मटके का पानी कभी खराब नहीं होता और यह सेहत के लिए हर मौसम में फायदेमंद है।
घड़े को कब बदलना चाहिए, यह जानना जरूरी
मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की सीमा तय होती है। पानी के घड़े को तीन महीने से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि तीन महीने में मिट्टी में मौजूद मिनरल खत्म हो जाते हैं। तीन महीने बाद नया घड़ा इस्तेमाल लाना चाहिए।