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24 साल से मंदिर में बंद है लड़की,पूजा कर लोग चढ़ाते हैं प्रसाद

एमपी की ललिता देवी की कहानी अजब है।उसे 8 साल की उम्र में वैराग्य हुआ और फिर वो एक मंदिर में बंद हो गई। आज उस मंदिर में रहते हुए 24 साल हो गए और वो बाहर नहीं निकलती। ललिता जिस मंदिर में रहती है वह रानीपुरा के बीहड़ों में है। इस बारे में उसके माता-पिता भी कुछ नहीं बोलते और लोगों ने अब उसे पूजना शुरू कर दिया है।

भिंड । ‘8 साल की उम्र में वैराग्य और बिना देवी-देवताओं की मूर्ति वाले मंदिर में 24 साल से बंद…’ ये कहानी है ललिता देवी की। ललिता के मन में छोटी से उम्र में भगवान के प्रति ऐसी ललक जगी कि उसने खुद को पूरी तरह उन्हें समर्पित कर दिया। ललिता ने खुद को जिस मंदिर में बंद कर लिया है। वह मंदिर चंबल के बीहड़ों में मौजूद छोटे से गांव रानीपुरा में है। जब से ललिता ने मंदिर में रहना शुरू किया है। तभी से उसने किसी से कोई बात नहीं की है। इस बारे में उसके माता-पिता भी कुछ नहीं बोलते।

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बताया जाता है कि ललिता की जिंदगी 1997 में उस वक्त बदल गई। जब रानीपुरा गांव में एक धार्मिक आयोजन हुआ।इस आयोजन में गांव के सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया।उनमें गांव की 8 साल की ललिता देवी भी शामिल थी. उसने पूरे 8 दिनों तक व्रत रखा. इस व्रत का प्रभाव ये हुआ कि ललिता के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया।. उसके बाद वो जहां बैठी तो फिर वहां से उठी नहीं. उसने न कुछ खाया और न लोगों की बात सुनी. उसके बाद बहुत मिन्नतें करने पर वह उठी और दूसरी जगह बैठ गई।

पूजा-अर्चना करने लगे लोग

ललिता के पिता लाल सिंह इटावा पुलिस में थानेदार थे। उनकी अलावा तीन अन्य बहनें व एक भाई है। सभी की शादी हो चुकी है. ललिता का समर्पण, तपस्या और त्याग को देख कर परिजनों ने उसे निजी जगह पर मंदिर बनवा दिया। इस मंदिर में पूरे समय ललिता ही रहती है। इस मंदिर में उनके लिए विश्राम कक्ष बना हुआ है. ललिता दिनभर मौन धारण करती है। बीच में स्वल्प आहार लेती है।गांव वालों ने अब उसकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी है। उसे बाकायदा भोग लगाया जाता है। इस मंदिर पर त्योहारों पर सैकड़ों की भीड़ रहती है। लोग बड़ी संख्या में यहां धार्मिक अनुष्ठान करने आते हैं. लोगों की मन्नत पूरी होने पर वे पूजा-पाठ करते हैं. उसके पिता का कहना है कि वो अपना पूजा कर रही है, त करने दो।