रायपुर । राजधानी में गणेश प्रतिमाओं को पीओपी से बनाने का चलन लगभग खत्म हो गया और ज्यादातर प्रतिमाएं मिट्टी से बन रही हैं। इसके साथ एक और प्रयोग हुआ है, गोबर से प्रतिमाएं बनाने का। गणेश चतुर्थी से ठीक एक दिन पहले ही शहर में 800 प्रतिमाएं तैयार कर ली गई हैं। यह प्रयोग पिछले साल कम पैमाने पर हुआ था, इस बार ज्यादा बनी हैं। इन प्रतिमाओं के बीच में फलों और सब्जियों के बीज भी डाले जा रहे हैं। विसर्जन के बाद अगर इन्हें गमलों में रख दिया जाए तो खाद की जरूरत पूरी होगी। यही नहीं, इन्हें नदी-तालाबों में भी विसर्जित किया जाएगा और इससे पानी दूषित नहीं होगा और रासायनिक रंगों के दुष्प्रभावों को भी रोका जा सकेगा।

नदी-तालाबों को प्रदूषण से बचाने के लिए घर में ही प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर आम लोगों ही नहीं शासन-प्रशासन में भी जागरूकता बढ़ी है। गोबर से बन रही प्रतिमाओं की खासियत यह है कि अगर इन्हें गमले में विसर्जित किया जाए तो फिर उनमें अलग से खाद डालने की जरूरत नहीं होगी। प्रतिमा के बीच में ही फल और सब्जियों के बीज डाले गए हैं। विसर्जन के बाद इसे गमले में डालने से कुछ दिनों बाद बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगेंगे और पौधे तैयार होंगे। छत्तीसगढ़ में गोबर के उपयोग को लेकर शासन-प्रशासन स्तर पर प्रयास चल रहा है। इसी प्रयास का नतीजा है कि गोकुल नगर स्थित निगम को गौठान में एक समाजसेवी संस्था ऐसी प्रतिमाएं तैयार करवा रही है। संस्था के रितेश अग्रवाल ने बताया कि इस साल 800 प्रतिमाएं तैयार की गई हैं। इसके लिए रथयात्रा से तैयारी शुरू हो गई थी।

तीन से 15 इंच की प्रतिमाएं
संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि इस साल तीन से 15 इंच तक की प्रतिमाएं तैयार की गई हैं। प्रतिमाओं में दो तरह के बीज डाले गए हैं। नैचुरल कलर वाली प्रतिमाओं में सब्जियों के बीज डाले गए हैं। जिन्हें कलर किया गया है, उनमें आम, अमरूद, पपीता इत्यादि के बीज डाले गए हैं। इस गौठान में प्रतिमाओं के अलावा गोबर से दीये, ईंट सहित कई तरह की चीजें बनाई जा रही हैं।
होलिका काष्ठ के बाद अब प्रतिमाएं
रितेश अग्रवाल ने बताया कि हिंदू मान्यताओं में गोबर को बहुत शुद्ध और पवित्र माना गया है। विधि-विधान और पूजा इत्यादि में गोबर के ही गणेश बनाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान है। इसके बावजूद गोबर की गणेश प्रतिमाएं बनाने पर अब तक ज्यादा धान नहीं दिया है। इसलिए अब गणेश प्रतिमा तैयार इसकी शुरुआत की जा रही है। गोबर से होलिका दहन के लिए काष्ठ भी तैयार कर रहे हैं। धीरे-धीरे हर धार्मिक और दैनिक कामों में गोबर का प्रयोग पहले की तरह बढ़ेगा। इससे प्रकृति की भी रक्षा होगी और गौवंश के संरक्षण और विकास पर भी काम हो सकेगा।