गया। स्टेशन रोड के निकट गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में स्त्री सत्संग के द्वारा मनाया गया श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जी का शहीदी दिवस। कोरोना महामारी को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया और स्त्री सत्संग के द्वारा शहीदी दिवस के उपलक्ष में पिछले 1 महीने में देश विदेश की सभी संगतो ने मिलकर 10 सहज पाठ किए एक अखंड पाठ किए और 40 सुखमणि साहिब जी का पाठ किया गया पाठ करने में सिंगापुर से सीता कालरा, इंदौर से मनजीत कौर, मुंबई से नीलम अरोड़ा और गया कि सभी संगत में पाठ किया।शहीदी दिवस वाले दिन सभी पाठ की समाप्ति हुई सामूहिक अरदास हुई समाप्ति के बाद गुरु का प्रसाद बांटा गया और साथ ही साथ छबील (शरबत) की सेवा हुई।

सेवा में मौजूद कवलजीत कौर, रजनी छाबड़ा ,शीतल सलूजा ,सतनाम कौर, सोनिया छाबड़ा, रश्मि बग्गा ,अमरजीत कौर साथ ही साथ चिक्की बग्गा ,महेश्वरी गुप्ता कुलवंत सिंह मौजूद थे।खालसा यूथ परिवार के संयोजक परमीत सिंह बग्गा उर्फ अंकुश बग्गा ने बताया कि गुरु अर्जुन देव जी की अमर गाथा आज भी देश विदेश के हर घर में सुनाई जाती है। उनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता गुरु राम दास थे जो सिखों के चौथे गुरु थे और माता का नाम बीवी भानी था।
क्यों शहीद हुए श्री गुरु अर्जुन देव जी

गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। मुगलकाल में अकबर, गुरु अर्जुन देव जी के मुरीद थे, लेकिन जब अकबर का निधन हो गया तो इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में इनके रिश्तों में खटास पैदा हो गई। ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने आदेश दिया था, तो गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी। यही वजह थी कि जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। गुरु अर्जुन देव ईश्वर को यादकर सभी यातनाएं सह गए और 30 मई, 1606 को उनका निधन हो गया। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने यह अरदास की तेरा भाणा मीठा लागे के शब्द अनुसार मुगलों द्वारा किया गया हर अत्याचार अपने शरीर पर सहन किया। भीष्ण गर्मी में आग से तपते तवे पर बैठकर और सिर पर गर्म रेत डलवा कर भी उन्होंने वाहेगुरु का नाम लिया और वाहेगुरु का शुक्राना अदा किया।
श्री गुरु अर्जुन देव जी की रचनाएं
अर्जुन देव जी को साहित्य से भी अगाध स्नेह था। ये संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। इन्होंने कई गुरुवाणी की रचनाएं कीं, जो आदिग्रन्थ में संकलित हैं। इनकी रचनाओं को आज भी लोग गुनगुनाते हैं और गुरुद्वारे में कीर्तन किया जाता है।