राजगढ़ |दिव्यांग के पिता भागीरथ का कहना है कि मैं ओढ़पुर गांव से हूं. दवा आई थी, हम मियां-बीवी तो काम करने चले गए थे, मेरे माता-पिता थे उन्होंने ही इसको ले जाकर दवा पिलवा दी. दवाई पिलाने के बाद दूसरे दिन से इसका चलना बंद हो गया. पोलियो की दवा थी.

मध्य प्रदेश के राजगढ़ में पोलियो की दवाई पीने के बाद भी पोलियो बीमारी होने से दिव्यांग हुए एक व्यक्ति ने शासन एवं स्वास्थ्य विभाग से उचित मुआवजे के लिए न्याय की गुहार लगाई थी. करीब 25 साल लंबी लड़ाई लड़ने के बाद राजगढ़ कोर्ट ने पीड़ित को 42 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.
मुआवजे के भुगतान के लिए इतनी राशि की संपत्तियां राजगढ़ स्वास्थ्य विभाग की संपत्ति से कुर्क की जाएगी. कोर्ट के आदेश से फिलहाल राजगढ़ स्वास्थ्य विभाग के आदेश से फिलहाल राजगढ़ स्वास्थ्य विभाग के तीन वाहनों की कुर्की हुई है. तीनों वाहन राजगढ़ के जिला न्यायालय में खड़े हैं.
मध्य प्रदेश राजगढ़ जिले के ओढ़पुर गांव के रहने वाले देवीलाल नाम के व्यक्ति को साल 1996 में पोलियो की दवा स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिलाई गई थी. इस पल्स पोलियो दवा पीने के बाद भी देवीलाल को पोलियो हो गया और वह दिव्यांग हो गए. इसके बाद पीड़ित देवीलाल ने हर्जाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पीड़ित के वकील रुचि सक्सेना ने बताया कि हमारे पक्षकार तब देवीलाल 3 साल के थे जब उनको पल्स पोलियो की वैक्सीन लगाई गई थी. जो वैक्सीन लगाने के बाद नाकाम हो गई थी. जिला न्यायालय ने उस समय 25,000 रुपये के हर्जाने के आदेश शासन को दिए थे, लेकिन जिला न्यायालय के फैसले के विरुद्ध शासन उच्च न्यायालय चला गया था |
उच्च न्यायालय ने साल 2017 में दिए अपने आदेश में संबंधित पीड़ित को ब्याज सहित मुआवजा देने के आदेश सुनाए थे.

इस आदेश के खिलाफ भी शासन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों निचली अदालतों के फैसले को सही मानते हुए शासन की अर्जी निरस्त कर दी. उसके बाद से अब तक देवीलाल की फाइल जस की तस पड़ी हुई थी और उन्हें किसी तरह का भुगतान नहीं हुआ.
मुआवजे के लिए अपील
जिसके बाद अब उनके वकील ने फिर कोर्ट में शुरू से अभी तक 42 लाख के मुआवजे के लिए अपील की. इसी के तहत कोर्ट के आदेश से स्वास्थ्य विभाग एवं प्रशासन के तीन वाहनों (एक टाटा सूमो, एक टोयोटा क्वालिस और एक पिकअप) को कुर्की की कार्रवाई करते हुए जब्त कर लिया गया.
दिव्यांग पीड़ित देवी लाल ने आजतक से बातचीत के दौरान कहा, ‘मैं चल नहीं पाता हूं. पोलियो की दवा पी तब से ही पैर खराब हो गए. उसके बाद मेरे पिताजी ने न्यायालय में केस लगा दिया. 27 साल से केस चल रहा है. 2017 में केस जीत गया था. उसके बाद भी सरकार पैसे नहीं डाल रही थी. इस चक्कर में बहुत चक्कर लगाने पड़ते
हैं.’
दिव्यांग के पिता भागीरथ ने बताया, ‘मैं ओढ़पुर गांव से हूं. दवा आई थी, हम मियां-बीवी तो काम करने चले गए थे, मेरे माता-पिता थे उन्होंने ही इसको ले जाकर दवा पिलवा दी. दवाई पिलाने के बाद दूसरे दिन से इसका चलना बंद हो गया. पोलियो की दवा थी. जिसके बाद कोर्ट में आकर केस लगाया तो वहां से बच्चे को 25,000 रुपये देने का आदेश हुआ था.