सात किलोमीटर दूर अस्पताल, खाट पर कराहती सुरजी की मौत
रोते हुए सुनील ने सवाल किया कि कब तक हम लोग ऐसे मरते रहेंगे, सड़क क्यों नहीं बनती है उनके गांव में?
रांची |सुरजी और उनकी सड़क पर पैदा होते ही मर गई बच्ची अब इस दुनिया में नहीं हैं. पीछे छूट गई है झारखंड के गिरिडीह ज़िले की वो सात किलोमीटर लंबी सड़क, जिसपर प्रसव पीड़ा से कराहती सुरजी को खाट पर लेटाकर स्वास्थ्य केंद्र ले जाने की कोशिश की गई थी|सुरजी ने इसी सड़क पर बच्ची को जन्म दिया लेकिन वो वहीं मर गई. रिश्तेदारों की तेज़ चाल और हांफती सांसें जब 26 फरवरी को सुरजी को लेकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचीं, तब अस्पताल में कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था. कुछ देर बाद सुरजी की सांसें भी हमेशा के लिए थम गईं.

गिरिडीह ज़िले की सड़कों और स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत सुरजी के पति सुनील टुडू की बात से पता चलती है. सुनील कहते हैं, ‘गांव तक कोई गाड़ी नहीं पहुंचती है. हमें न तो एंबुलेंस, न ही सहिया के बारे में कोई जानकारी है. इसलिए खाट पर ही बांधकर नज़दीक के अस्पताल ले गए.’मौक़े पर मौजूद गावां प्रखंड के उप-प्रमुख नवीन यादव के मुताबिक़, ‘इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर उस वक्त डॉक्टर काजिम ख़ान की ड्यूटी थी. वो भी मौके पर मौजूद नहीं थे. इसके अलावा एक अन्य डॉक्टर सालिक जमाल भी मौजूद नहीं थे. इन दोनों डॉक्टरों को फ़ोन भी किया गया, लेकिन उन्होंने उठाया नहीं.’
बड़ा अस्पताल 23 किलोमीटर दूर

सुरजी ज़िले के तीसरी प्रखंड के बरदौनी गांव के लक्ष्मीबथान टोला की रहने वाली थीं.इस जगह से तीसरी ब्लॉक स्थित स्वास्थ्य केंद्र की दूरी 23 किलोमीटर है. इसलिए रिश्तेदार सात किलोमीटर दूर के गावां ब्लॉक के स्वास्थ्य केंद्र की ओर चल दिए.सुरजी के पति सुनील टुडू ने बीबीसी को बताया, ‘साल 2016 में शादी हुई थी. ये हमारा पहला बच्चा होता. उस रोज़ मज़दूरी करने घर से बाहर गया था. दोपहर में सुरजी को दर्द शुरू हुआ. गांव में मौजूद महिलाएं देख-रेख कर रही थीं. लेकिन बच्चा पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया.’
‘जब दर्द देखा नहीं गया तो पिताजी कान्हू टुडू ने दूसरे लोगों के साथ मिलकर खटिया पर सुरजी को सुला दिया और चार-पांच लोग कंधे पर लादकर सात किलोमीटर (लगभग साढ़े तीन घंटा) तक पैदल चले.”इस दौरान रास्ते में बच्चा बाहर आ गया. लेकिन कुछ ही देर बाद उसकी मौत हो गई. फिर पत्नी को लेकर परिजन अस्पताल पहुंचे, थोड़ी देर बाद वो भी मर गई.’रोते हुए सुनील ने सवाल किया कि कब तक हम लोग ऐसे मरते रहेंगे, सड़क क्यों नहीं बनती है उनके गांव में?
अधिक खून बह जान से नहीं मिला इलाज का मौक़ा
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इस पूरे घटनाक्रम पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.गिरिडीह के सिविल सर्जन डॉ सिद्धार्थ सान्याल ने बताया, ‘घटना के संबंध में उनके स्तर पर जांच कमेटी बना दी गई है. जहां तक डॉ काजिम खान के अनुपस्थित रहने का सवाल है, शाम चार बजे वह खाना खाने गए थे. वहीं डॉ सालिक जमाल क्यों मौजूद नहीं थे, इसकी जानकारी नहीं है. दोनों से ही स्पष्टीकरण पूछा गया है. ये जानकारी मिली है कि इन दोनों ने फोन भी नहीं उठाया. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इनपर कार्रवाई होगी.’उन्होंने यह भी बताया कि घटना के दो दिन पहले इलाक़े की एएनएम ने प्रसूता की जांच की थी. हालांकि परिजन इससे इंकार कर रहे हैं.
डॉ काजिम खान ने बताया, ‘उस दिन डॉ अरविंद कुमार की ड्यूटी थी. लेकिन वो एक बैठक में शामिल होने गिरिडीह ज़िला मुख्यालय चले गए थे. ऐसे में उनकी जगह मैं ड्यूटी पर था. सुबह नौ बजे से तीन बजे तक मैंने ओपीडी में मरीजों को देखा था. पौने चार बजे इमर्जेंसी में एक मरीज को देखा था. चूंकि तीन बजे के बाद ड्यूटी खत्म हो जाती है. इसके बाद केवल इमर्जेंसी में मरीज़ आने पर ऑन कॉल उपलब्ध होता हूं. इसलिए चार बजे के बाद अस्पताल से किलोमीटर दूर खाना घाने घर चला गया था.’उन्होंने यह भी बताया कि सुरजी के आने के बाद नर्स ने जैसे ही नाल काटा उसकी मौत हो गई. क्योंकि उन्हें पोस्टपार्टम हेमरेज यानी डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग अधिक होने की शिकायत थी, ऐसे में ट्रीटमेंट का मौका ही नहीं मिला.