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अग्निपथ स्‍कीम में जाति पर बवाल जारी

राष्ट्रपति का बॉडीगार्ड बनने के लिए सिर्फ इन तीन जातियों के लोग कर सकते हैं अप्लाई,

नई दिल्ली।  सेना में भर्ती के लिए जाति व धर्म प्रमाण पत्र मांगे जाने पर भारतीय सेना के अधिकारी ने सफाई दी है। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सवाल उठाते हुए दावा किया था कि भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है। सेना में भर्ती के लिए जाति प्रमाण पत्र मांगे जाने के मामले पर मचे बवाल के बीच, सैन्य अधिकारियों ने कहा कि अग्निपथ योजना के तहत भर्ती प्रक्रिया में किसी प्रकार का खास बदलाव नहीं हुआ है। उनका कहना है कि जाति/धर्म इत्यादि जैसे सर्टिफिकेट भर्ती के दौरान सेना में हमेशा से मांगे जाते हैं।

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संजय सिंह ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था, “मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है। क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना भर्ती के क़ाबिल नही मानते? मोदी जी आपको “अग्निवीर” बनाना है या “जातिवीर”।” ये पहली बार नहीं है जब सेना में भर्ती के लिए जाति के मामले पर बवाल मचा है।

इसी साल सेना में ‘अहीर रेजिमेंट‘ बनाने की मांग करते हुए गुरुग्राम में अहीर समुदाय के युवाओं ने प्रदर्शन किया था और धरने पर बैठ गए थे। सैकड़ों लोगों ने इसकी मांग करते हुए एक रैली निकाली थी, जिसके कारण टोल प्लाजा के पास ट्रैफिक जाम हो गया था। प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड (पीबीजी) को लेकर भी इसी तरह का विवाद 2012 और 2017 में सामने आया था। तब सर्वोच्च अदालत ने पीबीजी में भर्ती के संबंध में दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि गणतंत्र के प्रमुख राष्ट्रपति के खिलाफ जनहित याचिका पर कैसे विचार किया जा सकता है?

प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड में भर्ती के मामले में सेना ने दिया था जवाब

दरअसल, देश के राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगी सेना की यूनिट को प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड यानी पीबीजी कहते हैं और राष्ट्रपति की सुरक्षा में जो बॉडीगार्ड लगे होते हैं, उनमें सेना के जाट, सिख और राजपूतों को प्राथमिकता दी जाती है। एक आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि पीबीजी की संरचना में केवल सिख, जाट और राजपूत हैं, जिनमें प्रत्येक जाति की हिस्सेदारी 33.1 प्रतिशत होती है। 2013 में एक याचिका के जवाब में सेना ने स्वीकार किया था कि पीबीजी में भर्ती केवल इन तीन जातियों के लिए है। हालांकि, सेना ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में इस आरोप का खंडन किया कि यह भर्ती जाति और धर्म के आधार पर की जाती है।