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बंदरों के आतंक से परेशान 3 विभाग मिलकर भी नहीं कर पा रहे बंदर की नसबंदी

बंदर पकड़ने पर 500 रुपए का इनाम, पशुपालन विभाग हुआ लाचार 

अल्मोड़ा। बंदरों के उत्पात से शहर वासियों को होने वाली समस्या का हल यह निकाला गया था कि संयुक्त अभियान चलाकरबंदरों की नसबंदी की जाए। लेकिन अब यह अभियान ही एक समस्या बन गया है। प्रशासन ने नगरपालिका, पशुपालन और वन विभागों को संयुक्त तौर पर यह बीड़ा सौंपा था, लेकिन डॉक्टरों की भारी कमी के चलते तीनों ही विभाग परेशान हैं। सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशासनिक रवैए के खिलाफ आंदोलन चलाने की बात कह रहे हैं। बंदर पकड़ने पर 500 रुपए का इनाम देने की घोषणा भी की गई है।  फिर भी प्रशासन इस समस्या से निजात नहीं दिला पा रहा है

अल्मोड़ा नगर में बंदरों का आतंक इतना है कि स्कूल जाते बच्चे, बाज़ार से खरीदारी करती महिलाएं और पुरुष और अन्य राहगीर परेशान हैं। भारी जनदबाव के कारण बंदरों की नसबंदी का कार्यक्रम शुरू किया गया लेकिन सप्ताह में एक दिन नसबंदी होने के बाद अब स्थायी डॉक्टर न होने से अभियान को झटका लग रहा है। पशुपालन विभाग में भी बंदरों की नसबंदी करने वाले डॉक्टर न के बराबर हैं. ऐसे में कोई रास्ता निकालने के लिए सभी सरकार की तरफ देख रहे हैं।

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परमानेंट डॉक्टरों की कमी

मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी उदय शंकर का कहना है कि उनके पास डॉक्टर की कमी है। वे सप्ताह में सिर्फ एक दिन व्यवस्था कर पा रहे हैं. अगरवन विभाग को प्रतिनियुक्ति पर एक डॉक्टर मिल जाए तो समस्या सुलझ सकती है. इधर, डीएफओ दीपचन्द्र पंत का कहना है कि वन विभाग के पास बंदरों की नसबंदी करने के लिए स्थायी डॉक्टर नहीं है। अफसरों का कहना है कि डीएम के माध्यम से शासन को परमानेंट डॉक्टर के लिए पत्र लिखा गया है।

विभागों के रवैये पर नाराज़गी बढ़ी

इस पूरे मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मनोज सनवाल का कहना है कि बंदरों की नसबंदी रोजाना होनी चाहिए। तभी बंदरों की आबादी में कमी आ सकती है। नाराज़ एक्टिविस्टों का प्रतिनिधित्व करते हुए सनवाल ने कहा, विभाग को कई महीनों के बाद नसबंदी अभियान की याद आती है और वह भी ठीक से चल नहीं पाता अगर यह अभियान इसी तरह अटकता रहा, तो आंदोलन किया जाएगा।