अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों की पड़ताल
सिर्फ एक दिन मशीन चलाकर सप्लायरों को भुगतान, फिर लाखों की मशीनें कबाड़
रायपुर । गंभीर मरीजों के इलाज के लिए सीजीएमएससी द्वारा खरीदी जा रही कुछ मशीनें, इलाज में मदद करने की बजाय सप्लायरों की जेबें भरने के काम आ रही हैं। क्योंकि इन मशीनों को संबंधित अस्पताल सप्लायरों के भुगतान तक सिर्फ एक दिन चला रहे हैं, उसके बाद उसे कोई देखने वाला ही नहीं।

कई मशीनों तो ऐसी हैं, 10 वर्षों में उन्हें चलाने न योग्य डॉक्टर रखे गए हैं, न ही किसी जूनियर को ट्रेनिंग देकर तैयार किया गया है। प्रदेश के 26 जिला अस्पताल, 19 सिविल अस्पताल और 7 मेडिकल कॉलेज की पड़ताल में इसका खुलासा हुआ है। दुर्ग जिला अस्पताल में दो वेंटिलेटर, एक एफरेसिस, एक फेको मशीन, बिलासपुर मेडिकल कॉलेज में एक सीआर्म, एक साफ-सफाई मशीन, अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में एक एबीजी मशीन ऐसी ही स्थिति में मिली।
बीते 10 सालों के भीतर खरीदी गईं इन मशीनों को उनके इंस्टॉलेशन के दिन ही चलाया गया है। उसके बाद से सभी शो-पीस बनी हुई है, जबकि इनके सप्लायरों को इंस्टालेशन होते ही पूरा भुगतान कर दिया गया है। जहां तक राहत की बात है, अब तक एक भी मरीज को इन मशीनों से सुविधा नहीं मिली है। इसमें कई जंग लगने के कारण कबाड़ में तब्दील हो गई है। इससे मरीजों को सुविधा नहीं मिल रही।
तीन जिलों की वो तीन मशीनें जो खोल रही पोल
दुर्ग : 19 लाख में खरीदी फेको मशीन, 6 साल में 1 भी आपरेशन नहीं

सीजीएमएससी ने मोतियाबिंद के बेहतर आपरेशन के लिए 17 फरवरी 2016 को जिला अस्पताल दुर्ग में 19 लाख की फेको मशीन भेजी थी। इंस्टालेशन के तुरंत बाद सर्टिफिकेट देने से उसके सप्लायर को भुगतान तो कर दिया गया, लेकिन आज तक यह मशीन चल नहीं पाई है। 16 फरवरी 2019 को बिना चले इस मशीन की गारंटी भी खत्म हो गई।

बिलासपुर : 13 लाख की पुरानी सी-आर्म कबाड़ हो गई, नई खोली नहीं

सिम्स मेडिकल कॉलेज, बिलासपुर को सीजीएमएससी ने करीब 10 साल पहले हड्डियों को लाइव दिखाने वाली सी-आर्म मशीन भेजी थी। इंस्टॉलेशन के बाद कुछ दिन तक इसे चलाया गया, आगे तकनीकी खामियां बताकर रख दिया। तबसे जंग खा रही है। इसकी जगह दो साल पहले नई सी-आर्म मशीन भी भेजी गई, जो अब तक डिब्बे से बाहर नहीं निकली।
अंबिकापुर : 25 लाख की एबीजी मशीन, कोरोनाकाल में भी उपयोग नहीं

मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर से संबद्ध अस्पताल को सीजीएमएससी ने 2018 में एबीजी (आर्टिरियल ब्लड गैस एनालाइजर) मशीन दिया था। तबसे अब तक यह मशीन आईसीयू में बिना उपयोग के जस की तस पड़ी है। यहां के एमएस डॉ. लखन सिंह का कहना है कि इसका केमिकल इतना कीमती है, हम उसका खर्च वहन नहीं कर सकते हैं। केमिकल भेजा नहीं गया।
सप्लायर मशीनें अस्पताल पहुंचाता है, इंस्टालेशन रिपोर्ट पर भुगतान
राज्य के अस्पतालों के लिए ज्यादातर मशीनें सीजीएमएससी (छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन) खरीदती है। जब भी वह कोई मशीन किसी अस्पताल में भेजती है, तब प्रोटोकॉल के तहत सप्लायर उसके प्रभारी से इंस्टालेशन रिपोर्ट लेता है। स्टोर इंजार्च, प्रभारी और बायोमेडिकल इंजीनियर के हस्ताक्षर युक्त यह रिपोर्ट जैसे ही सप्लायर सीजीएमएससी को देता है, सीजीएमएससी उसके सभी देयकों का भुगतान कर देती है। आगे मशीनें चल रही की नहीं, इसकी कोई पूछ-परख नहीं की जाती है।
बिना ट्रेनिंग प्रोग्राम के ही उसका प्रमाण पत्र तक जारी कर दे रहे
सीजीएमएससी द्वारा भेजी जा रहीं इन मशीनों की खरीदी से लेकर इंस्टालेशन में बड़ी गड़बड़ी होती है। यहां तक की जिस दिन ये मशीनें इंस्टॉल होती है, उस दिन उन्हें चलाने के लिए संतोषजनक ट्रेनिंग मिलने का प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया जाता है। इस प्रमाण-पत्र पर भी स्थानीय जिम्मेदार आंख बंद कर हस्ताक्षर कर देते हैं। नीचे से लेकर ऊपर तक बैठा एक भी अधिकारी सवाल नहीं खड़ा करता है। इससे सप्लायर को तो उसकी कीमत मिल जाती है। मशीनें शो-पीस बन जाती हैं।
डॉ. नीरज बंसोड़, डायरेक्टर हेल्थ, छग
कल ही पूरे प्रदेश का डाटा मंगवाता हूं..
प्रदेश के अस्पतालों में करोड़ों की मशीनें भेजी जा रही, लेकिन उसे चला नहीं पा रहे?
सारी मशीनें चलाई जानी चाहिए। यह मरीजों के इलाज में सुविधा के लिए खरीदी जाती है।
फिर दुर्ग, बिलासपुर की जरूरी मशीनें क्यों बंद पड़ी है?
आपके माध्यम से यह जानकारी मुझे मिल रही है, मैं इसे चेक करवाता हूं।
इसकी निगरानी के लिए कोई सिस्टम है कि नहीं?
कल पूरे प्रदेश का डाटा मंगवाकर चेक कराता हूं।