यूपी में मर्डर पॉलिटिक्स की 3 कहानियां: CBI ने एक का केस लौटा दिया
14 फरवरी को शाहजहांपुर में वोटिंग के दौरान सपा कार्यकर्ता सुधीर यादव की हत्या कर दी गई। यूपी में इस बार के चुनाव से जुड़ा ये पहला मर्डर है, लेकिन बैलट और बुलेट का गठजोड़ यहां सालों से चलता आ रहा है। कभी चुनाव से पहले तो कभी चुनाव के बाद। आज हम तीन विधायकों के मर्डर की कहानियां लेकर आए हैं। जहां अपने सितारे गर्दिश में जाते देख नेताओं ने जीते हुए विधायक को गोलियों से भून दिया।

1. राजू पाल की बॉडी में 19 गोलियां उतार दी गई थी
25 जनवरी 2005, इलाहाबाद का हर चौराहा तिरंगे झंडों से पटा पड़ा था। दोपहर 3 बजे इलाहाबाद शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल एसआरएन हॉस्पिटल से निकले। साथ में दो गाड़ियां चल रही थी। क्वालिस और स्कॉर्पियो। राजू पाल काफिले की क्वालिस गाड़ी को खुद चला रहे थे। बगल वाली सीट पर रुखसाना को बैठाया था। रुखसाना राजू के दोस्त की पत्नी थी जो रास्ते में मिल गई थी।

गाड़ी का शीशा चीरते हुए एक गोली सीने में जा धंसी
काफिला सुलेमसराय के जीटी रोड पर था तभी बगल से तेज रफ्तार स्कॉर्पियो राजू पाल की गाड़ी को ओवर टेक करते हुए आगे आ गई। राजू कुछ समझ पाते इसके पहले ही एक गोली सामने का शीशा चीरते हुए उनके सीने में घुस गई। धड़धड़ाते हुए स्कॉर्पियो से पांच हमलावर उतरे। तीन ने राजू पाल की गाड़ी को घेरकर फायर करना शुरू किया और बाकी दो ने पीछे चल रही स्कॉर्पियो पर। गोलियों की तड़तड़ाहट सुनकर आसपास के लोग घटना स्थल की तरफ भागे, जो घटना स्थल पर थे वे दूसरी तरफ भागे।
घटना को 17 साल बीते लेकिन न्याय नहीं मिल पाया
हमलावरों को जब लग गया कि राजू की सांसे थम गई हैं, तब वे भागे। धूमनगंज पुलिस आई। टैक्सी से राजू को लेकर एसआरएन भागी। डॉक्टरों ने हाथ जोड़ लिए। पोस्टमार्टम हुआ तो 19 गोलियां निकली। साथ बैठे संदीप यादव और देवीलाल की भी मौत हो गई। पुलिस ने उस वक्त के सपा सांसद अतीक अहमद, उनके भाई अशरफ, फरहान, रंजीत पाल, आबिद, गुफरान के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया। आज तक फैसला नहीं सुनाया जा सका।
कभी अतीक अहमद के ही साथ करते थे काम
अतीक अहमद के सांसद बनने से शहर पश्चिमी सीट खाली हो गई। उपचुनाव हुआ तो अतीक के भाई अशरफ को बसपा के राजू पाल ने हरा दिया। इस हार के बाद जो राजू पाल कभी अतीक अहमद के खास हुआ करते थे, वे एक झटके में सबसे बड़े दुश्मन बन गए थे। विधायक बनने के तीन महीने बाद 15 जनवरी 2005 को राजू ने पूजा से शादी की। 25 जनवरी को उनकी हत्या कर दी गई। पूजा उसी सीट से 2007 और 2012 में विधायक बनीं। हालांकि, 2017 में वे हार गई। 2022 के चुनाव में वे कौशांबी की चायल सीट से सपा की प्रत्याशी हैं।
2. कृष्णानंद हत्याकांड का केस CBI ने वापस कर दिया था
गाजीपुर जिले की एक सीट है मोहम्मदाबाद। कहा जाता है कि यहां की राजनीति फाटक के अंदर से शुरू होती है। इस फाटक के पीछे लगता है मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल अंसारी का दरबार। 1985 से इस सीट पर अंसारी परिवार का कब्जा था। 2002 में अंसारी परिवार के अजेय रथ को रोकते हुए भाजपा नेता कृष्णानंद राय विधायक बन गए। कृष्णा ने अफजाल को 8 हजार वोटों से हरा दिया। ये हार मुख्तार के दिमाग में बैठ गई। इसका असर बेहद भयानक दिखा।


सात शवों से निकली थीं 67 गोलियां
25 नवंबर 2005, कृष्णानंद अपने पड़ोस वाले गांव में क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्धाटन करने जा रहे थे। नजदीक ही जाना था इसलिए बुलेट प्रूफ गाड़ी के बजाय नॉर्मल गाड़ी से चले गए। उद्धाटन करके निकले। भांवरकोल की बसनिया पुलिया के पास एक सिल्वर ग्रे कलर की SUV सामने आकर खड़ी हो गई। विधायक कुछ समझ पाते इसके पहले ही गाड़ी से 8 लोग उतरे और एके-47 से फायरिंग झोंक दी।
शरीर के साथ गाड़ी भी छलनी हो गई। करीब 500 राउंड फायर हुए। गुंडो को भरोसा हो गया कि विधायक कृष्णानंद राय और उनके साथ के 6 लोग मारे जा चुके हैं, तब जाकर वे निकले। सात शवों का पोस्टमार्टम हुआ तो 67 गोलियां निकली।
CBI ने केस लेकर वापस कर दिया
इस हत्याकांड के बाद विधायक के समर्थक तोड़फोड़ पर उतर गए। पूरा पूर्वांचल दहल उठा। जमकर आगजनी हुई। विधायक की पत्नी अलका राय ने मुख्तार, अफजाल, मुन्ना बजरंगी, अताहर रहमान उर्फ बाबू, संजीव महेश्वरी के खिलाफ केस दर्ज करवाया। अलका CBI जांच चाहती थी। CBIकेस लेना नहीं चाहती थी। केस लिया तो कुछ दिन बाद ही छोड़ दिया। कुछ दिन बाद एकमात्र चश्मदीद गवाह शशिकांत राय की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। जांच चली। सबूत नहीं मिला। सभी बाइज्जत बरी हो गए।
3. मुलायम के खास जवाहर पंडित को एके-47 से भून दिया गया
13 अगस्त 1996, इलाहाबाद की झूंसी सीट के सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित अपने ऑफिस से घर लौट रहे थे। उनकी मारुति 800 कार को गुलाब यादव चला रहे थे। जवाहर पीछे वाली सीट पर कल्लन के साथ बैठे थे। गाड़ी सिविल लाइन्स के पैलेस सिनेमा के पास पहुंची। पीछे से मारुती वैन आई और सामने खड़ी हो गई।

भागने तक का वक्त न मिला
जवाहर पंडित समझ गए लेकिन कार का गेट खोल पाते उसके पहले ही एके-47 से चली गोली उनके कंधे से होते हुए पीठ से निकल गई। चार गुण्डे लगातार फायरिंग कर रहे थे। दोनाली राइफल, पिस्टल और रिवॉल्वर से फायरिंग जारी रही। जवाहर, गुलाब और कल्लन मार दिए गए। दुकानों के शटर गिर गए। सन्नाटा छा गया।
23 साल बाद न्याय मिल पाया
जवाहर यादव की पत्नी विजमा यादव ने कपिल मुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया और इनके पिता श्याम नारायण उर्फ मौला महराज के खिलाफ केस दर्ज करवाया। केस दर्ज होने के कुछ दिन बाद ही मौला महराज की मौत हो गई। 23 साल तक केस चलता रहा। 4 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने चारों आरोपियों को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
बालू बनी थी हत्या की वजह
जवाहर यादव विधायक बनने से पहले शराब कारोबारी थे। विधायक बने तो बालू के ठेको में भी एंट्री मारी। यहां करवरिया परिवार का दबदबा था। सामने आए तो विवाद शुरू हो गया। जवाहर यादव मुलायम सिंह यादव के खास माने जाते थे, इसलिए वह झुकने को तैयार नहीं थे। उन्होंने करवरिया परिवार के बालू ट्रको की आवाजाही अपनी जमीन से रोक दी। इसके बाद इस बात की आशंका बढ़ गई थी कि अब लड़ाई आर-पार की होगी। आखिरकार यही हुआ।