धोखाधड़ी का मामला मानकर कोर्ट ने परिवादी पर लगाया दो हज़ार का जुर्माना
इंदौर। एक्सीडेंट के बाद क्लेम हासिल करने के लिए एक व्यक्ति ने कोर्ट में फर्जी बीमा पॉलिसी पेश कर दी। पॉलिसी की ओरिजनल काॅपी के बजाय फोटो कॉपी लगाई गई थी। बीमा कंपनी ने फोटोकॉपी की जांच कराई तो पता चला कि कंपनी ने कभी वह पॉलिसी जारी ही नहीं की। जो सीरियल नंबर फर्जी पॉलिसी पर लिखा था वह कंपनी के रिकॉर्ड में ही नहीं है। कोर्ट ने परिवाद खारिज करते हुए आदेश दिया कि बीमा कंपनी को हर्जाने के रूप में दो हजार रुपए भी दिए जाएं।

बीमा कंपनी के अधिवक्ता राजेश चौरसिया के मुताबिक 3 मार्च 2017 को केशव सोनी नामक व्यक्ति का एक्सीडेंट हो गया था। केशव का पैर टूट गया था। केशव ने क्लेम हासिल करने के लिए आठ लाख रुपए का परिवाद पेश किया। न्यायाधीश मुकेश नाथ की कोर्ट में सुनवाई हुई। कंपनी की ओर से कहा गया कि फर्जी बीमा पॉलिसी करना गंभीर अपराध है। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद परिवाद निरस्त कर दिया।

रोड किनारे धड़ल्ले से हो रही बीमा पाॅलिसी
पेट्रोल पंप, रोड किनारे कैनोपी लगाकर बीमा करने वालों की भी शिकायत वकीलों ने पूर्व में पुलिस से की थी। हाईवे पर भी स्टॉल लगाकर हाथोहाथ बीमा करने वाले भी फर्जी पाॅलिसी गाड़ी मालिकों को थमा देते हैं। इनके पास कम्प्यूटर में पॉलिसी का फॉर्मेट बना रहता है।
इसमें मालिक और गाड़ी की जानकारी लिखकर प्रिंट थमा देते हैं। आमतौर पर यह फर्जीवाड़ा तब तक पकड़ में नहीं आता जब तक गाड़ी का एक्सीडेंट न हो। सालभर की समय अवधि बीतने के बाद फर्जी पाॅलिसी वैसे ही लैप्स हो जाती है।